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भारत में सेटेलाइट तस्वीरें कम क्वालिटी की क्यों होती है?

 भारत में सेटेलाइट तस्वीरें कम क्वालिटी की क्यों होती है?


दोस्तों अक्सर आपने ऐसा देखा होगा कि जब हम गूगल मैप ओपन करते हैं। और उसमें भारत की किसी क्षेत्र की सेटेलाइट तस्वीर को हम गूगल मैप में देखते हैं। तो हमें ऐसा नजर आता है कि भारत की सेटेलाइट तस्वीर अन्य फॉरेन देशों की सेटेलाइट तस्वीर के मुकाबले कम क्वालिटी क्यों होती है। तो कई लोगों के मन में कई बार ऐसे सवाल आता होगा  की आखिर भारत की सेटेलाइट तस्वीर इतनी खराब क्वालिटी की क्यों होती है? तो आइए जानते हैं इसके बारे में बेहद रोचक जानकारी।

भारत में सेटेलाइट तस्वीरें कम क्वालिटी की क्यों होती है?
भारत में सेटेलाइट तस्वीरें कम क्वालिटी की क्यों होती है

भारत के कानून

दोस्तों दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जिसके कानून में सालों तक कोई संशोधन नहीं होता होगा। लेकिन बदकिस्मती से भारत एक ऐसा देश है जहां पर अभी भी ऐसे बहुत से कानून है जिन्हें संशोधन की जरूरत है। लेकिन ब्यूरोक्रेसी और राजनीति के चलते भारत में कोई भी कानून में संशोधन करने के लिए नेता और अधिकारियों के मन में उत्साह नहीं होता। यही कारण है की भारत में अभी भी सेटेलाइट की जो तस्वीरें है वह बीसवीं सदी के क्वालिटी की दिखाई जाती है।

क्योंकि हर देश में लगभग हर देश में ऐसा कानून होता है कि अगर किसी प्राइवेट कंपनी को देश की सेटेलाइट तस्वीरें लेनी है तो उसकी एक निर्धारित क्वालिटी सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। जिसके तहत कोई भी कंपनी प्राइवेट या कोई भी आदमी उस देश के की तस्वीर लेते समय या मैपिंग करते समय बहुत ज्यादा अच्छी क्वालिटी की तस्वीरें इकट्ठे नहीं कर सकते। इसमें पिक्सेल के द्वारा तस्वीर की क्वालिटी निर्धारित होती है।

दोस्तों भारत में कानून है कि कोई भी सेटेलाइट अगर धरती की तस्वीर खींचता है। तो उसमें कम से कम 2 चौरस मीटर की पिक्सेल होनी चाहिए। और अगर आप कई विकसित देशों में देखें तो उन देशों में यही पिक्सेल की साइज 1 मीटर या आधे मीटर तक भी है। तो यह भी एक कारण है कि भारत में तस्वीरें कुछ खास अच्छी क्वालिटी की नजर नहीं आती। और विकसित देशों में ज्यादा अच्छी क्वालिटी की होती है। क्योंकि विकसित देशों ने अपने कानूनों में बदलाव करके प्राइवेट कंपनियों को ज्यादा अच्छी तस्वीरें खींचने की इजाजत दे दी गई है।

हालांकि भारत में भी अब प्राइवेट कंपनियां भारत सरकार पर लगभग दबाव ही बना रही है कि उन्हें अच्छी तस्वीरें लेने दे। जिससे वह कंपनियां भारतीय जमीनों की अच्छे से मैपिंग कर सके। अभी के कानून के तहत ज्यादा अच्छी तस्वीरें ना होने की वजह से ओला, उबेर, स्वैगी, जोमैटो जैसी कंपनियों को बहुत नुकसान सहना पड़ रहा है। लेकिन हमें आशा है कि जल्द ही इन कानूनों में बदलाव किए जाएंगे और संशोधन करके प्राइवेट कंपनियों को अच्छी क्वालिटी की तस्वीरें लेने की इजाजत दी जाएगी।

कैसे होता है यह पिक्सेल

दोस्तों कोई भी तस्वीर पिक्सएल के सहारे नापी जाती है। पिक्सएल यानी एक रंग का चौकोन होता है जिन्हें साथ मिलाकर एक पूरी तस्वीर बनाई जाती है। अगर आप पुराने मोबाइल या फिर टीवी देखोगे तो बारीकी से देखने पर आपको उस स्क्रीन पर छोटे-छोटे पिक्सेल नजर आएंगे। जो लाल, नीली और हरे कलर की होती है। यह पिक्सेल जितने छोटे आकार के होंगे और जितने ज्यादा होंगे। उतनी ज्यादा अच्छी तस्वीर आएगी और जितने बड़े होंगे और जितने कम होंगे उतनी ही तस्वीर खराब आएगी। अगर तस्वीर में बड़े-बड़े पिक्सेल एक साथ मिलाकर कम पिक्सेल में यह तस्वीर बनाई गई है तो यह खराब क्वालिटी की तस्वीर हो सकती है। लेकिन अगर छोटे-छोटे बहुत सारे पिक्सेल मिलाकर एक तस्वीर बनाई गई है तो यह तस्वीर बहुत अच्छी क्वालिटी की होगी। इसका मतलब है कि पिक्सेल जितने छोटे और ज्यादा होंगे फोटो उतनी ही अच्छी और साफ दिखाई देगी।

ड्रोन के द्वारा तस्वीरें खींची जाने पर पाबंदी

ऐसे कई देश है जहां पर गूगल जैसी कंपनियां ड्रोन या फिर विमान के जरिए जमीन की तस्वीरें लेते हैं। जिस वजह से तस्वीरें काफी अच्छी क्वालिटी की ओर अलग-अलग एंगल से तस्वीरें लेने की वजह से एक अच्छी तस्वीर बनाने का मौका उन्हें मिलता है। लेकिन भारत में ड्रोन या फिर विमान से जमीन की तस्वीरें लेने पर बहुत पाबंदियां है। इस वजह से भारत में ड्रोन या विमान के जरिए जमीन की तस्वीर नहीं ली जाती। तस्वीरें लेने का बस एक ही सोर्स है जो कि सेटेलाइट है। इस वजह से जमीन की तस्वीरें बहुत अच्छी-अच्छी नहीं आ पाती।


हमें आशा है कि आपको यह जानकारी पसंद आई है। अगर आपको पसंद आई हो तो कमेंट करके बताएं।

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